कौन थे श्री नियामतुल्लाह अंसारी और क्या था रज़ालत ...
Posted by Arif Aziz | Sep 30, 2025 | Biography, Culture and Heritage, Education and Empowerment, Pasmanda Caste, Social Justice and Activism | 0 |
Hazratbal Shrine Controversy over National Emblem ...
Posted by Arif Aziz | Sep 17, 2025 | Culture and Heritage, Miscellaneous | 0 |
सोशल मीडिया से सड़कों तक जनरेशन-ज़ेड का तूफ़ान...
Posted by Arif Aziz | Sep 15, 2025 | Education and Empowerment | 0 |
क्या मौलिकता की दुश्मन है हमारी स्कूल व्यवस्था?...
Posted by Arif Aziz | Sep 9, 2025 | Education and Empowerment, Social Justice and Activism | 0 |
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Popularपुस्तक समीक्षा: इस्लाम का जन्म और विकास
by Arif Aziz | May 1, 2024 | Book Review | 0 |
मशहूर पाकिस्तानी इतिहासकार मुबारक अली लिखते हैं कि इस्लाम से पहले की तारीख़ दरअसल अरब क़बीलों का इतिहास माना जाता था। इस में हर क़बीले की तारीख़ और इस के रस्म-ओ-रिवाज का बयान किया जाता था। जो व्यक्ति तारीख़ को महफ़ूज़ रखने और फिर इसे बयान करने का काम करते थे उन्हें रावी या अख़बारी कहा जाता था। कुछ इतिहासकार इस्लाम और मुसलमान में फ़र्क़ करते हैं।
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राष्ट्र निर्माण में शिक्षकों की भूमिका: चुनौतियाँ और समाधान
by Abdullah Mansoor | Sep 7, 2024 | Education and Empowerment | 0 |
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Beyond the Banner: Understanding the “I Love Muhammad”
by Arif Aziz | Oct 4, 2025 | Education and Empowerment, Political | 0 |
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Top Ratedफिल्म जो जो रैबिट: नाज़ी प्रोपेगेंडा की ताकत और बाल मनोविज्ञान
by Abdullah Mansoor | Jul 17, 2024 | Movie Review, Reviews | 0 |
जोजो रैबिट (Roman Griffin Davis) 10 साल का एक लड़का है। यह तानाशाह के शासनकाल (Totalitarian regime) में पैदा हुआ है। इसलिए जोजो के लिए स्वतंत्रता, समानता, अधिकार जैसे शब्द कोई मायने नहीं रखते क्योंकि उसने कभी इन शब्दों का अनुभव ही नहीं किया है। जोजो सरकार द्वारा स्थापित हर झूठ को सत्य मानता है। सरकार न सिर्फ डंडे के ज़ोर से अपनी बात मनवाती है बल्कि वह व्यक्तियों के विचारों के परिवर्तन से भी अपने आदेशों का पालन करना सिखाती है। आदेशों को मानने का प्रशिक्षण स्कूलों से दिया जाता है। स्कूल किसी भी विचारधारा को फैलाने के सबसे बड़े माध्यम हैं। हिटलर ने स्कूल के पाठ्यक्रम को अपनी विचारधारा के अनुरूप बदलवा दिया था। वह बच्चों के सैन्य प्रशिक्षण के पक्ष में था, इसके लिए वह बच्चों और युवाओं का कैंप लगवाता था। जर्मन सेना की किसी भी कार्रवाई पर सवाल करना देशद्रोह था। सेना का महिमामंडन किया जाता था ताकि जर्मन सेना द्वारा किए जा रहे अत्याचार किसी को दिखाई न दे। बच्चों के अंदर अंधराष्ट्रवाद को फैलाया जाता था। इसी तरह जोजो भी खुद को हिटलर का सबसे वफादार सिपाही बनाना चाहता है
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Prophet Muhammad: A Life of Leadership and Teaching
by Azeem Ahmed | Oct 6, 2024 | Biography | 0 |
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हॉलीवुड, पश्चिमी मीडिया और ईरान: छवि निर्माण की राजनीति
by Abdullah Mansoor | Jun 21, 2025 | Movie Review, Poetry and literature, Political, Reviews | 0 |
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LatestBeyond the Banner: Understanding the “I Love Muhammad”
by Arif Aziz | Oct 4, 2025 | Education and Empowerment, Political | 0 |
~ Dr. Uzma Khatoon In September 2025 during the Barawafat (Eid-e-Milad-un-Nabi), a simple...
Beyond the Banner: Understanding the “I Love Muhammad”
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Read Moreसऊदी-पाकिस्तान रक्षा समझौता और भारत का संतुलनकारी रास्ता
पश्चिम एशिया का भू-राजनीतिक परिदृश्य हाल में बड़े बदलाव से गुज़रा है। पहले जहां अरब देशों का सुरक्षा फोकस ईरान पर था, अब इज़राइल की आक्रामक नीतियाँ और गाज़ा संघर्ष चिंता का केंद्र बन गई हैं। दोहा पर इज़राइली हमले और अमेरिकी निष्क्रियता ने खाड़ी देशों को अमेरिका पर अविश्वास की ओर धकेला। इसी पृष्ठभूमि में सऊदी अरब–पाकिस्तान सामरिक रक्षा समझौता (SMDA) हुआ, जिससे पाकिस्तान को आर्थिक-सैन्य सहयोग और सऊदी को सुरक्षा विकल्प मिला। भारत के लिए यह चुनौती और अवसर दोनों है। फिलिस्तीन पर भारत का समर्थन उसे अरब देशों में नैतिक व रणनीतिक बढ़त दिला रहा है।
Read Moreकौन थे श्री नियामतुल्लाह अंसारी और क्या था रज़ालत टैक्स?
by Arif Aziz | Sep 30, 2025 | Biography, Culture and Heritage, Education and Empowerment, Pasmanda Caste, Social Justice and Activism | 0 |
श्री नियामतुल्लाह अंसारी (1903–1970) स्वतंत्रता सेनानी और सामाजिक न्याय के योद्धा थे। गोरखपुर में जन्मे, उन्होंने गांधीजी के असहयोग आंदोलन से जुड़कर आज़ादी की लड़ाई में सक्रिय भूमिका निभाई। वे कांग्रेस और मोमिन कॉन्फ्रेंस के माध्यम से मुस्लिम लीग की विभाजनकारी राजनीति का विरोध करते रहे। उनका सबसे बड़ा योगदान “रज़ालत टैक्स” के खिलाफ़ कानूनी लड़ाई थी, जो पसमांदा मुसलमानों पर थोपे गए अपमानजनक कर का अंत कर गई। 1939 में अदालत ने उनके पक्ष में ऐतिहासिक फ़ैसला दिया। अंसारी ने दबे-कुचले समाज को सम्मान दिलाया और समानता की मशाल जलाकर सामाजिक क्रांति की राह प्रशस्त की।
Read MoreHazratbal Shrine Controversy over National Emblem and Islamic Teachings
by Arif Aziz | Sep 17, 2025 | Culture and Heritage, Miscellaneous | 0 |
Here’s a 100-word summary:
Hazratbal Dargah in Srinagar, a sacred shrine for Kashmiri Muslims, became the center of controversy when the Waqf Board placed India’s national emblem inside its prayer hall during renovations. Though intended to beautify and symbolize unity, many worshippers saw it as political interference in a holy space, sparking protests. The issue reflects Kashmir’s history of faith intertwined with politics, from the 1963 relic crisis to militancy in the 1990s. Islamic teachings do not ban images outright, but mixing state symbols with worship violates religious sensitivity. The incident highlights the need for dialogue, respect for faith, and separation of politics from spirituality.
Read Moreसोशल मीडिया से सड़कों तक जनरेशन-ज़ेड का तूफ़ान
by Arif Aziz | Sep 15, 2025 | Education and Empowerment | 0 |
दक्षिण एशिया में युवा आंदोलनों ने सत्ता संरचनाओं को चुनौती दी है। श्रीलंका, बांग्लादेश और नेपाल में हालिया उथल-पुथल युवाओं की साझा चेतना और भ्रष्टाचार-विरोधी आवाज़ को दर्शाती है। नेपाल में जनरेशन-ज़ेड ने सोशल मीडिया प्रतिबंध, बेरोजगारी और वंशवाद के खिलाफ आंदोलन किया, जिससे राजनीतिक बदलाव हुए। बालेन शाह जैसे नेता सामने आए और सरकार को प्रतिबंध हटाने व सुधार की दिशा में कदम उठाने पड़े। स्थिर भविष्य के लिए युवाओं की आकांक्षाओं को शामिल कर लोकतांत्रिक संस्थाओं को मज़बूत करना अनिवार्य है।
Read Moreक्या मौलिकता की दुश्मन है हमारी स्कूल व्यवस्था?
by Arif Aziz | Sep 9, 2025 | Education and Empowerment, Social Justice and Activism | 0 |
अब्दुल्लाह मंसूर अपने लेख में स्कूल व्यवस्था की आलोचना करते हैं कि यह बच्चों की मौलिकता और जिज्ञासा को दबा देती है, उन्हें मशीन जैसा बना देती है और औद्योगिक क्रांति के फैक्ट्री मॉडल पर आधारित है। परीक्षा, ग्रेड और अनुशासन के दबाव में बच्चे सोचने और सवाल पूछने की क्षमता खो देते हैं, बस रटंत शिक्षा रह जाती है। वह पाउलो फ्रेरे के “बैंकिंग मॉडल” के विरोध में संवाद आधारित, सोचने-समझने वाली शिक्षा की बात करते हैं। नई शिक्षा नीति (NEP 2020) का समर्थन करते हुए वे कहते हैं कि असली शिक्षा आत्म-खोज, रचनात्मकता, आलोचनात्मक दृष्टि और मानवता के विकास के लिए है, न कि केवल अंकों और नौकरी तक सीमित।[1]
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